ख्वाहिशों के दायरें
सन्नाटें दूर तलक केवल सुनाई देते रहते हैं
मेरे ख्वाहिशों के दायरे में अब कोई नहीं रहता
एक मजारे माहौल सा तैयार हो गया है
वहाँ दफ्न है हर रूह की जिंदा कोई नहीं रहता।
यहाँ हर कोने में कोई न कोई लम्हा कैद है
कभी जाता हूँ तो उन सब से मैं मिल के आता हूँ
कुछ टूटे हैं, कुछ बिखरे हैं, कुछ बीमार बैठे हैं
बेफिक्र है माली, उन्हें अब कोई नहीं चुनता।
कुछ दूर आगे खाली एक मैदान रखा है
वहाँ मैं चीखता हूँ, डाटता हूँ, रो भी लेता हूँ
आवाजें दूर तलक जाके वैसे ही लौट आती हैं
जो मैं कहता रहता हूँ उसे अब कोई नहीं सुनता।
वही पास में झरने सा बहता वक़्त जा रहा है
दावा है जिसका वो यहाँ सब सींच जाएगा
कोई कैसे समझाए उसे अब उसकी बेबसता
मिटते हैं छाप रेतों से, निशां कोई नही धुलता .
सन्नाटें दूर तलक केवल सुनाई देते रहते हैं
मेरे ख्वाहिशों के दायरे में अब कोई नहीं रहता